चिनॉय सेठ, जिनके अपने घर शीशे के हों, वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते| राजा, वक्त (1965)

इरादा पैदा करो, इरादा. इरादे से आसमान का चांद भी इंसान के कदमों में सजदा करता है|  प्रोफेसर सतीश ख़ुराना, बुलंदी (1980)

ये तो शेर की गुफा है. यहां पर अगर तुमने करवट भी ली तो समझो मौत को बुलावा दिया| राणा, मरते दम तक (1987)

काश तुमने हमें आवाज़ दी होती तो हम मौत की नींद से उठकर चले आते| राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)

जब राजेश्वर दोस्ती निभाता है, तो अफसाने लिक्खे जाते हैं और जब दुश्मनी करता है, तो तारीख़ बन जाती है| राजेश्वर सिंह, सौदागर (1991)

ना तलवार की धार से, ना गोलियों की बौछार से.. बंदा डरता है तो सिर्फ परवर दिगार से| ब्रिगेडियर सूर्यदेव सिंह, तिरंगा (1992)

हम अपने कदमों की आहट से हवा का रुख़ बदल देते हैं| पृथ्वीराज, बेताज बादशाह (1994)

हमने देखे हैं बहुत दुश्मनी करने वाले, वक्त की हर सांस से डरने वाले. जिसका हरम-ए-ख़ुदा, कौन उसे मार सके, हम नहीं बम और बारूद से मरने वाले| साहब बहादुर राठौड़ (1995)